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Jai Mata di

नवरात्रि में माता जी की आराधना कैसे करें: एक संपूर्ण मार्गदर्शन

नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से देवी दुर्गा और उनके विभिन्न रूपों की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व 9 दिन और रातों तक चलता है, और इन दिनों में माता के विभिन्न रूपों की पूजा करने का महत्व अत्यधिक होता है। नवरात्रि में माता जी की आराधना न केवल मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति के लिए की जाती है, बल्कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी प्रेरित करती है।

आइए, जानते हैं कि नवरात्रि में माता जी की आराधना कैसे की जाए ताकि हम उनकी कृपा पा सकें:

1. नवरात्रि में सच्चे मन से उपासना

माता की पूजा सच्चे मन और श्रद्धा से करनी चाहिए। नवरात्रि का उद्देश्य केवल बाहरी पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक आंतरिक परिवर्तन का भी पर्व है। पूजा के दौरान एकाग्रता और शांति बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण है।

2. नवरात्रि व्रत और उपवास

नवरात्रि में उपवास रखना एक विशेष प्रथा है। उपवास से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं। हालांकि, उपवास का उद्देश्य केवल भोजन त्यागना नहीं, बल्कि आत्मा को पवित्र करना भी है। उपवास के दौरान फलाहार किया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक कठोरता से बचें।

3. नवरात्रि में माता के 9 रूपों की पूजा

नवरात्रि के दौरान, माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
ये नौ रूप होते हैं:

1. शैलपुत्री – पहले दिन उनकी पूजा करें जो शक्ति और शांति की प्रतीक हैं।
2. ब्राह्मचारिणी – दूसरे दिन ब्राह्मचारिणी माता की पूजा करने से ब्राह्मण धर्म और संयम की प्राप्ति होती है।
3. चन्द्रघंटा – तीसरे दिन की पूजा शक्ति और साहस को बढ़ाती है।
4. कुष्मांडा – चौथे दिन का व्रत और पूजा मनुष्य को संतुलन और सुख देती है।
5. स्कंदमाता – पांचवे दिन की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
6. कात्यायनी – छठे दिन की पूजा से कष्टों का नाश और मानसिक शांति मिलती है।
7. कालरात्रि – सातवें दिन की पूजा से भय और परेशानियों का नाश होता है।
8. महागौरी – आठवें दिन की पूजा से शुभ फल और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
9. सिद्धिदात्री – अंतिम दिन की पूजा से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

4. नवरात्रि में माता का मंत्र जप

नवरात्रि में देवी के मंत्रों का जाप करना बहुत लाभकारी होता है।

“ॐ दुं दुर्गायै नमः”

“ॐ श्री महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती नमः”

जैसे मंत्रों का जाप करने से मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति मिलती है।

5. नवरात्रि में माता के भोग का महत्व

माता को भोग अर्पित करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस दौरान गाय के घी से बने व्यंजन, फल, मीठा आदि भोग अर्पित करें। यह दर्शाता है कि आप अपने जीवन में सुख और समृद्धि की कामना कर रहे हैं।

6. नवरात्रि में ध्यान और साधना

नवरात्रि के दिनों में ध्यान और साधना का अभ्यास करें। यह आपके मन को शांत करता है और आपकी आंतरिक शक्ति को जागृत करता है। साधना में भगवती का ध्यान करके हम अपनी जीवन की समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं।

7. नवरात्रि में सत्कर्म और सेवा

माता की पूजा का एक अन्य महत्वपूर्ण अंग है सत्कर्मों में भाग लेना। इन दिनों में विशेष रूप से गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करें। यह कार्य आपको मानसिक संतुष्टि प्रदान करता है और साथ ही देवी की कृपा प्राप्त करने का अवसर भी प्रदान करता है।

8. नवरात्रि में माँ के भजन और कीर्तन

नवरात्रि के दौरान देवी के भजन, कीर्तन और संगीत का आयोजन करें। इनका आनंद लेने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है।

निष्कर्ष:

नवरात्रि में माता जी की पूजा न केवल हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाती है, बल्कि यह हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लाती है। इस समय को अपनी आत्मा की उन्नति और भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करने के रूप में मानें। यदि आप सच्चे मन से माता की आराधना करेंगे, तो वह आपकी सभी इच्छाओं को पूरा करेंगी और जीवन में खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करेंगी।

आपका आशीर्वाद और कृपा सदा बनी रहे, यही हमारी शुभकामनाएं हैं।

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चंद्र ग्रहण दोष

चंद्र ग्रहण दोष: कारण, प्रभाव और समाधान चंद्र ग्रहण दोष ज्योतिषशास्त्र में एक महत्वपूर्ण और…

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मेष राशि में शनि की साढ़े साती

मेष राशि में शनि की साढ़े साती: प्रभाव और उपाय

मेष राशि में शनि की साढ़े साती का समय एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण दौर होता है। शनि, जो न्याय के देवता माने जाते हैं, अपने राशियों में प्रवेश करने पर व्यक्तित्व, कार्य, और जीवन की दिशा में बदलाव लाते हैं। जब शनि मेष राशि में साढ़े साती शुरू करता है, तो यह व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न असर डाल सकता है, जैसे कि मानसिक तनाव, दैविक परीक्षण, और कार्यक्षेत्र में बाधाएं। इस आर्टिकल में हम शनि की साढ़े साती के दौरान मेष राशि पर पड़ने वाले प्रभावों और उनसे निपटने के उपायों पर चर्चा करेंगे।

शनि की साढ़े साती क्या है?

शनि की साढ़े साती वह अवधि है जब शनि ग्रह व्यक्ति की जन्म राशि से 12वें, पहले और दूसरे घरों में गोचर करता है। इस दौरान व्यक्ति के जीवन में चुनौतियां, संघर्ष और बदलाव आते हैं। शनि का यह गोचर व्यक्ति के कर्मों के हिसाब से प्रभाव डालता है, और यह जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे करियर, परिवार, स्वास्थ्य, और मानसिक स्थिति को प्रभावित करता है।

मेष राशि में शनि की साढ़े साती के प्रभाव

1. करियर और व्यवसाय में बदलाव:
मेष राशि के जातकों के लिए शनि की साढ़े साती के दौरान करियर में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं। यह समय नौकरी में प्रमोशन या बदलाव के संकेत देता है, लेकिन साथ ही कार्य में रुकावटें और विलंब भी हो सकते हैं। शनि का यह प्रभाव व्यक्ति को अधिक मेहनत करने और अपनी कार्यशैली में सुधार लाने की प्रेरणा देता है।
2. आर्थिक स्थिति पर प्रभाव:
शनि की साढ़े साती के दौरान आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। किसी भी निवेश में सावधानी बरतने की जरूरत होगी। खर्चे बढ़ सकते हैं और अचानक धन की आवश्यकता भी महसूस हो सकती है। यह समय संचित धन और सही वित्तीय योजनाओं पर ध्यान देने का है।
3. स्वास्थ्य की समस्याएं:
शनि की साढ़े साती के दौरान स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं। खासकर हड्डियों, दांतों और जोड़ों के साथ जुड़ी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मानसिक तनाव भी इस अवधि में अधिक हो सकता है, जिससे तनाव और चिंता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
4. व्यक्तिगत जीवन और परिवार:
परिवार में विवाद या रिश्तों में तनाव हो सकते हैं। शनि का प्रभाव व्यक्ति को अकेलापन महसूस करा सकता है, और उसे अपने रिश्तों को पुनः मजबूत करने के लिए प्रयास करने की आवश्यकता हो सकती है। यह समय रिश्तों में सुधार करने और अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी निभाने का है।

शनि की साढ़े साती के उपाय

1. शनि मंदिर में दर्शन:
शनि की साढ़े साती के दौरान शनि मंदिर में दर्शन करना और शनि देवता की पूजा करना विशेष फलकारी हो सकता है। इससे मानसिक शांति और तनाव में कमी आ सकती है।
2. काले तिल और तेल का दान:
शनि देव को काले तिल और काले कपड़े अर्पित करना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही काले तिल और तेल का दान करना भी लाभकारी हो सकता है।
3. हनुमान जी की पूजा:
हनुमान जी की पूजा करने से शनि के कष्टों से राहत मिल सकती है। विशेष रूप से मंगलवार और Saturday के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से लाभ होता है।
4. सत्य बोलने और मेहनत करने पर ध्यान दें:
शनि ग्रह व्यक्ति को कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। इस दौरान हर काम में ईमानदारी, कड़ी मेहनत और सही रास्ते पर चलने से जीवन में सुधार आ सकता है।
5. पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाएं:
पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना और उसकी पूजा करना शनि के प्रभाव को शांत करने का एक प्रभावी उपाय है।
6. शनि मंत्र का जप करें:
शनि के शांति के लिए “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जप करना भी एक प्रभावी उपाय हो सकता है। इसका नियमित जप शनि के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है।

निष्कर्ष

मेष राशि में शनि की साढ़े साती के दौरान जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव आ सकते हैं, लेकिन सही उपाय और सकारात्मक सोच से इस अवधि को अच्छे तरीके से पार किया जा सकता है। यह समय आत्मविकास, कर्मों में सुधार और मानसिक शांति प्राप्त करने का है। शनि के मार्गदर्शन में, व्यक्ति अपने जीवन में स्थिरता और सफलता प्राप्त कर सकता है।

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चंद्र ग्रहण दोष

चंद्र ग्रहण दोष: कारण, प्रभाव और समाधान चंद्र ग्रहण दोष ज्योतिषशास्त्र में एक महत्वपूर्ण और…

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सूर्य ग्रह का कुंडली में प्रभाव

जानें सूर्य ग्रह का कुंडली में प्रभाव

सूर्य ग्रह कुंडली में आत्मा, पिता, मान-सम्मान, स्वास्थ्य और नेतृत्व क्षमता का कारक ग्रह माना जाता है। सूर्य के 12 भावों में अलग-अलग स्थितियों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है।

आइए जानें सूर्य का 12 भावों में फल:

  1. प्रथम भाव (लग्न) फल
    • सिर की समस्या या तनाव
    • आत्मविश्वासी, स्वाभिमानी और नेतृत्व क्षमता से भरपूर।
    • अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत व्यक्तित्व के धनी।
    • अहंकार की अधिकता हो सकती है।
  2. द्वितीय भाव फल
    • नेत्र कमजोर
    • वाणी में प्रभावशाली और मधुरता।
    • पारिवारिक संबंधों में कभी-कभी कड़वाहट।
    • आर्थिक स्थिति में सुधार, लेकिन खर्चों पर ध्यान देना आवश्यक।
  3. तृतीय भाव फल
    • कान की समस्या
    • साहसी, परिश्रमी और अपने प्रयासों से सफलता प्राप्त करने वाले।
    • भाई-बहनों के साथ संबंध अच्छे, लेकिन कभी-कभी प्रतिस्पर्धा का भाव।
    • कला और लेखन में रुचि।
  4. चतुर्थ भाव फल
    • हृदय समस्या
    • माता से लाभ, लेकिन कभी-कभी विचारों में असहमति।
    • जमीन-जायदाद और वाहन सुख।
    • मानसिक शांति में कमी।
  5. पंचम भाव फल
    • पेट समस्या
    • शिक्षा, प्रेम और संतान क्षेत्र में सफलता।
    • सृजनात्मकता और नेतृत्व क्षमता का विकास।
    • अति आत्मविश्वास हानिकारक हो सकता है।
  6. षष्ठ भाव फल
    • कर्ज़
    • रोग और शत्रुओं पर विजय।
    • कार्यक्षेत्र में कठिनाइयों के बाद सफलता।
    • स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  7. सप्तम भाव फल
    • गुप्त रोग
    • जीवनसाथी के साथ सम्मान और सहयोग।
    • विवाह और साझेदारी में सफलता।
    • कभी-कभी अहंकार के कारण वैवाहिक जीवन में तनाव।
  8. अष्टम भाव फल
    • दुर्घटना
    • गूढ़ ज्ञान और रहस्यमय विषयों में रुचि।
    • अचानक लाभ या हानि।
    • जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटनाएं।
  9. नवम भाव फल
    • भाग्य फल
    • धार्मिक, अध्यात्मिक और भाग्यशाली।
    • उच्च शिक्षा और धार्मिक यात्राओं का योग।
    • पिता से अच्छे संबंध और मार्गदर्शन।
  10. दशम भाव फल
    • कार्यक्षेत्र में उच्च पद और सम्मान।
    • प्रशासन, राजनीति और नेतृत्व के क्षेत्र में सफलता।
    • समाज में प्रतिष्ठा और ख्याति।
  11. एकादश भाव फल
    • आर्थिक लाभ और मित्रों से सहयोग।
    • बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता।
    • समाज में मान-सम्मान।
  12. द्वादश भाव फल
    • आध्यात्मिक और गुप्त कार्यों में रुचि।
    • विदेश यात्राओं का योग।
    • खर्चों में वृद्धि और स्वास्थ्य का ध्यान रखना आवश्यक।

सूर्य की दशा, दृष्टि और राशि अनुसार इसका प्रभाव बदल सकता है। कुंडली के अन्य ग्रहों और योगों का भी ध्यान रखना चाहिए।

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चंद्र ग्रहण दोष

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ज्योतिष के माध्यम से अपने जीवन की दिशा को समझें ujjain pandit ji

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चंद्र ग्रहण दोष

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शनि चंद्र (विषदोष)

क्या होता है शनि चंद्र विष दोष ?

शनि और चंद्र ग्रह का एक साथ कुंडली में बैठना (जिसे “विष दोष योग” या “शनि-चंद्र का संयोजन” भी कहा जाता है) एक महत्वपूर्ण स्थिति है और इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर विभिन्न तरीके से हो सकता है। यह संयोजन व्यक्ति की मानसिक स्थिति, भावना, और जीवन के कठिनाइयों के प्रति दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।

शनि चंद्र (विषदोष) कुछ मुख्य प्रभाव :

1. मानसिक तनाव और चिंता:
चंद्रमा मन, भावना और मानसिक स्थिति का कारक ग्रह है, जबकि शनि कर्म, प्रतिबद्धता, और कठोरता का प्रतीक है। जब ये दोनों एक साथ होते हैं, तो व्यक्ति में मानसिक तनाव, अवसाद, या चिंता की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। यह संयोजन व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे वे मानसिक रूप से चिड़चिड़े या असुरक्षित महसूस कर सकते हैं।
2. अनुशासन और संयम:
शनि का प्रभाव व्यक्ति को कड़ी मेहनत, अनुशासन, और जिम्मेदारी की ओर प्रेरित करता है। चंद्रमा के साथ संयोजन से व्यक्ति को मानसिक रूप से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है, और इस संयोजन से व्यक्ति में आत्म-नियंत्रण और संयम की भावना भी विकसित हो सकती है।
3. आवश्यकता से अधिक जिम्मेदारी:
यह योग व्यक्ति को जीवन में जिम्मेदारियों का सामना करने की प्रवृत्ति देता है। ऐसे लोग खुद को मानसिक दबाव में महसूस कर सकते हैं क्योंकि उन्हें हमेशा अपनी भावनाओं और कार्यों पर कड़ी निगरानी रखनी पड़ती है।
4. भावनात्मक अस्थिरता:
शनि के कठोर और चंद्रमा के परिवर्तनशील स्वभाव के कारण व्यक्ति की भावनाओं में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। कभी-कभी यह संयोजन व्यक्ति को अवसादित और उदास महसूस करवा सकता है, जबकि अन्य समय पर वे खुद को मानसिक रूप से मजबूत और समर्थ महसूस कर सकते हैं।
5. जीवन में विलंब और कठिनाइयाँ:
शनि का प्रभाव समय की धीमी गति और मेहनत से जुड़ा होता है। चंद्रमा के साथ मिलकर, यह व्यक्ति को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में अधिक समय और प्रयास की आवश्यकता महसूस करा सकता है। इसके बावजूद, एक बार यदि व्यक्ति लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो वह संतुष्ट और स्थिर महसूस कर सकता है।

शनि चंद्र (विषदोष) उपाय:

• नियमित रूप से मानसिक शांति के लिए ध्यान या योग करना।
• शनि और चंद्रमा से संबंधित रत्न जैसे नीला सफायर या मोती पहनना (कुंडली के अनुसार)।
• शनि और चंद्रमा के दोषों को सुधारने के लिए पूजन, व्रत, उपवास, और दान करना।

कुल मिलाकर, शनि और चंद्रमा का संयोजन व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयाँ ला सकता है, लेकिन यदि सही तरीके से समझा और समाधान किया जाए, तो यह व्यक्ति को मानसिक मजबूती और स्थिरता भी प्रदान कर सकता है।

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चंद्र ग्रहण दोष

चंद्र ग्रहण दोष: कारण, प्रभाव और समाधान चंद्र ग्रहण दोष ज्योतिषशास्त्र में एक महत्वपूर्ण और…

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kaal sarp dosh puja ujjain

क्या है कालसर्प दोष ? कालसर्प दोष के प्रकार

कालसर्प् दोष क्या होता है ?

सामान्यतः आपकी जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में आ जाये तो कालसर्प दोष बनता है या एसा कह सकते है कि राहु केतु आमने सामने हो और सभी ग्रह कुंडली के एक भाग में आ जाये तब जाकर इस दोष का निर्माण होता है

कालसर्प दोष सामान्यतः १२ प्रकार के होते है अलग अलग भाव से अलग अलग प्रकार का कालसर्प दोष बनता है आइये जानते है किस भाव से कौन सा कालसर्प दोष बनता है —

आइये जानते है कि कैसे बनते है कुंडली में १२ प्रकार के कालसर्प दोष ?

1 अनंत कालसर्प दोष—

सामान्यतः जन्मकुंडली में कालसर्प दोष राहु केतु के माध्यम से बनता है जब राहु केतु के बीच सारे ग्रह आ जाते है तब कालसर्प दोष बनता है पर जब राहु कुंडली की लग्न अर्थात् प्रथम भाव में हो और केतु सप्तम में और सभी ग्रह दोनों के बीच अर्थात् एक तरफ़ हो तब अनंत कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

2 कुलिक कालसर्प दोष—

जिस प्रकार पहले भाव से अनंत कालसर्प दोष का निर्माण होता है ठीक उसी प्रकार से दूसरे भाव में राहु और अष्टम में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच आ जाये तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है ।

3 वासुकी कालसर्प दोष—

आपको जन्मकुंडली में जब तीसरे भाव में राहु और नवम हो और इनके बीच में सभी ग्रह आ जाये तो वासुकि कालसर्प योग/दोष का निर्माण होता है ।

4 शंखपाल् कालसर्प दोष—

शंखपाल कालसर्प आपकी जन्मपत्रिका में जब बनता है जब राहु आपकी पत्रिका में चतुर्थ भाव में हो और केतु दशम भाव में और सभी ग्रह इनके बीच में हो तब यह दोष बनता है ।

5 पद्म कालसर्प दोष—

जब आपकी जन्मकुंडली में राहु पंचम भाव में हो जिसे हम शिक्षा या संतान के नाम से भी जानते है और केतु आय अर्थात् एकादश ११वे भाव में और सभी ग्रह उनके बीच में हो एसी परिस्थिति में पद्म कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

6 महापद्म कालसर्प दोष —

जब राहु ग्रह कुंडली कि छठे भाव में स्थित हो और केतु ग्रह बारवे भाव में स्थित हो और समस्त ग्रह इनके बीच में आ जाये तब महापद्म कालसर्प दोष बनता है यह स्थिति शत्रु के बेहत शुभ बताई गई है ।

7 तक्षक कालसर्प दोष—

अनंत कालसर्प की विपरीत परिस्थिति अर्थात् जब राहु ग्रह सातवें भाव में हो और केतु ग्रह लग्न में विराजमान हो और सभी ग्रह इनके बीच में हो तब एसी स्थिति में तक्षक कालसर्प बनता है ।

8 कर्कॉटक कालसर्प दोष—

जब जातक की जन्मकुंडली में अष्टम भाव में राहु ग्रह और दूसरे भाव में केतु ग्रह हो और बाक़ी सातो ग्रह इनके बीच हो तब कर्कॉटक कालसर्प दोष बनता है ।

9 शंकचूड़ कालसर्प दोष—

जब जन्मकुंडली में राहु ग्रह नवम भाव में और केतु ग्रह तीसरे भाव में हो और समस्त ग्रह इनके बीच में आ जाये तब शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

10 घातक कालसर्प दोष—

जब आपकी जन्मकुंडली में राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में और सभी ग्रह इनके बीच में हो तो एसी परिस्थिति में घातक नामक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

11 विषधर कालसर्प दोष—

जब जन्मकुंडली में राहु एकादश अर्थात् ११वे भाव में हो और केतु पंचम भाव में स्थित हो और सभी ग्रह इनके बीच में आ जाये तो इस दोष का निर्माण होता है ।

12 शेष कालसर्प दोष—

आपकी जन्मकुंडली में राहु ग्रह द्वादश अर्थात् बारवे भाव में हो और केतु ग्रह छठे भाव में स्थित हो और सभी ग्रह इनके बीच अर्थात् मुँह में आ जाये तब जाकर शेष कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

कालसर्प दोष के लक्षण-

कालसर्प दोष व्यक्ति से परिश्रम अपेक्षा से अधिक करवाता है कालसर्प दोष से पीड़ित लोगो को स्वप्न में सर्प दिखते है एक लंबे समय तक सफलता ना मिल पाना साथ ही जब आप किसी कार्य को बड़ी मेहनत से करते है और पूर्ण होने वाला हो तब एकदम से ख़राब हो जाना या शुरू से शुरू करना पड़ता है ( end time ) पर कार्य रुक जाना और कुछ परिस्थिति में आपको ग़लत खान पान गलत संगति की तरफ़ ले कर जाता है देखा गया है कि इसके प्रभाव से 80 से 90 प्रतिशत लोग काले और नीले कपड़े पहन ना अधिक मात्रा में पसंद करते है यह दोष आपको नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है मानसिक स्थिति को कमजोर करता है कही ना कही आपके वैवाहिक जीवन पर भी प्रभाव डालता है शिक्षा में रुकावट और सबसे ज़्यादा व्यापार में परेशानियाँ खड़ी करता है यहाँ तक कि देखा गया है कि अष्टम भाव का कालसर्प अर्थात् कर्कॉटक कालसर्प दोष अपनी खराब दशा आने पर मृत्यु जैसी परिस्थिति का निर्माण करता है

कालसर्प दोष के उपाय-

  1. काले और नीले वस्त्र पहन ने और दान करने से बचे ।
  2. जितना हो सके मांस मदिरा नशे से दूर रहे ।
  3. शिव आराधना करे ।
  4. किसी अपाहिज व्यक्ति को नशे का सामान दान करे ।
  5. रविवार के दिन टॉयलेट में नील डालकर फ़्लश करे ।
  6. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करे या ब्राह्मणों से करवाये ।
  7. उज्जैन या नासिक जाकर कालसर्प दोष की शांति का पूजन करे।
  8. किसी अच्छे ज्योतिषी के सलाह अवश्य लेवे ।

कहा होता है कालसर्प् दोष का पूजन ?

भारतीय ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार १२ ज्योतिर्लिंग में से महाराष्ट्र के नासिक में स्थित त्रयम्बकेश्वर में कालसर्प दोष की पूजा का विधान बताया जाता है और मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रांगण में नागचंद्रेश्वर मंदिर जो की वर्ष में एक बार सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलता है मान्यता है कि वहाँ दर्शन मात्र से कालसर्प दोष का निवारण होता है और उस दिन लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करते है और उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा की विधि करते है और यही एक मात्र कारण की वर्षों की परंपरा के अनुसार उज्जैन में भी क्षिप्रा नदी के तट पर कालसर्प दोष की पूजा विधि होती है जो की आज तक हो रही है ।

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कैसे करे कालसर्प दोष का निवारण ?

हमारे द्वारा उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे कालसर्प दोष शांति पूजा विधिवत करवाई जाती है आप पंडित जी से बात करके अपनी जन्मदिनांक और जन्म समय और जन्मस्थान के माध्यम से अपनी कुंडली दिखा कर किस प्रकार का दोष है जान सकते है और मार्गदर्शन प्राप्त कर विधिवत उसका उपाय निवारण और विधि भी जान सकते है

कालसर्प दोष की पूजा में कितना खर्च आता है ?

सामान्यतः कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए 2100 से 5100 तक का खर्च आता है जिसमें पूजा की सामग्री मंदिर स्थान की रसीद ब्राह्मण दक्षिणा सहित सभी खर्च सम्मिलित होता है इसके अलावा यदि आप पूजन के साथ जप करवाते है तो फिर खर्च बड़ जाता है
आपकी सुविधा के अनुसार खर्च बढ़ता और कम भी हो जाता है

कालसर्प दोष की पूजा विधि के लिये स्नान करके सफ़ेद वस्त्रों को धारण करके (कुर्ता पजामा या धोती) पंडित जी के पूजा स्थान पास पहुँच कर पूजन प्रारंभ करते है
कालसर्प दोष पूजा विधि में सर्व प्रथम आपको 5 पूजन करने होते हैं शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजन पूजन यज्ञ आदि को करने से पहले पंचांग कर्म अर्थात् (कर्मकांड पूजा विधि के पाँच अंग )करना अनिवार्य बताया गया है जिसमें सबसे पहले

  1. गणेश पूजन
  2. वरुण पूजन
  3. कुलदेवी पूजन
  4. नांदी श्राद्ध ( पितृ पूजन )
  5. ब्राह्मण वरण

कालसर्प दोष पूजा की विधि ?

होता है इसके बाद ही आप कालसर्प दोष का पूजन करना चाहिए यह पाँच पूजन होने के बाद कालसर्प दोष पूजन में 12 नागों का पूजन होता है और साथ ही एक चाँदी के नाग नागिन के जोड़े का मन्त्रों द्वारा प्रतिष्ठा कर पूजन अभिषेक किया जाता है इसके बाद भगवान शिव के साथ नवग्रह का पूजन करते है और सभी भगवान के निमित में हवन ( यज्ञ ) का कर्म होता है इसके पश्चात भगवान की आरती होती है और फिर चाँदी के जिस नाग नागिन का हम पूजन करते है उन्हें विधिपूर्वक क्षिप्रा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है विशेष बात जिन वस्त्रों को पहन कर आप पूजन विधि करते है उन वस्त्रों को पूजन के बाद नदी किनारे त्याग कर पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर जिन ब्राह्मणों द्वारा पूजन किया गया उनसे आशीर्वाद लेकर इस पूजा विधि को संपन्न किया जाता है ।

चंद्र ग्रहण दोष

चंद्र ग्रहण दोष: कारण, प्रभाव और समाधान चंद्र ग्रहण दोष ज्योतिषशास्त्र में एक महत्वपूर्ण और…

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Mhamrityunjay mantra Shiva

जानें- महामृत्युंजय मंत्र की महिमा

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से मरते हुए व्यक्ति को भी जीवन दान मिल सकता है

उज्जैन में, महामृत्युंजय जाप भगवान शिव या भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, जो सबसे दयालु देवता हैं। महा का अर्थ है महान, मृत्यु का अर्थ है मृत्यु और जय का अर्थ है विजय, जिसका अर्थ है कि इस जाप को करने से व्यक्ति को मृत्यु पर विजय मिलती है। मृत्युंजय जाप लंबी आयु, स्वास्थ्य, धन, शांति, समृद्धि और संतोष को बहाल करने में मदद करता है।
महामृत्युंजय जाप में महामृत्युंजय मंत्र का दोहराव शामिल है, जो भय, बीमारी और मृत्यु पर काबू पाने के लिए एक शक्तिशाली प्रार्थना है।महामृत्युंजय पूजा एक हिंदू अनुष्ठान है जो अच्छे स्वास्थ्य, दीर्घायु और असामयिक मृत्यु से सुरक्षा के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है। महामृत्युंजय पूजा हिंदू धर्म के सर्वोच्च देवता भगवान शिव को समर्पित एक शक्तिशाली अनुष्ठान है। ऐसा माना जाता है कि इसमें अकाल मृत्यु को दूर करने, अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने और दीर्घायु प्रदान करने की क्षमता है।पूजा में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है, जो एक पवित्र मंत्र है जो अपने उपचार गुणों के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसमें शारीरिक और मानसिक बीमारियों को दूर करने, दुर्घटनाओं और दुर्भाग्य से बचाने और समग्र कल्याण लाने की शक्ति है।

महामृत्युंजय मंत्र जप और यज्ञ के लाभ :

भगवान शिव के दिव्य आशीर्वाद के लिए
भय, तनाव, समस्याओं और अहंकार से राहत के लिए।
गहन धार्मिक अनुभूति के लिए.
सभी प्रकार की मृत्यु संबंधी चिंताओं और बुरे ग्रहों के प्रभाव से राहत के लिए।
लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं:

यह बीमारियों को हराता है और स्वास्थ्य को कई गुना बढ़ाता है।
यह मंत्र जप करने वाले परिवार की रक्षा करता है तथा उनके स्वास्थ्य में सुधार करता है।
यह संतुलित और शांत जीवन जीने वाले व्यक्ति की दीर्घायु को बढ़ावा देता है।
यह पूजा अपने आप में सबसे शक्तिशाली है और जीवन में सभी बुराइयों को खत्म करने में मदद करती है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति के जीवन में जटिलताएं और अवरोध समाप्त हो जाते हैं।
व्यावसायिक स्तर पर, यह विकास और उपलब्धि को बनाए रखता है और व्यक्ति की शक्ति को आकांक्षा की ओर निर्देशित करता है।
यह मंत्र शरीर के ऊर्जा बिंदुओं से नकारात्मकता को दूर करता है, जिससे शरीर को आराम मिलता है और वह तनाव से मुक्त हो जाता है।
इसके अलावा, इसमें जन्म के समय कुंडली में ग्रहों के बुरे प्रभावों को कम करने की अतिरिक्त क्षमता भी होती है।

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चंद्र ग्रहण दोष

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अर्क विवाह या कुंभ विवाह क्या है?

जिस पुरुष की कुंडली में २ या २ से अधिक विवाह के योग होते है उनके लिये अर्क विवाह का प्रयोग अनिवार्य होता है अर्क विवाह में लड़के के विवाह से कुछ दिन पहले उसका विवाह (सूर्य पुत्री) आकड़े के पैड के साथ किया जाता है

अर्का या कुंभ विवाह

कुंभ या घट विवाह —


जिस स्त्री की जन्मकुंडली में २ या २ से अधिक विवाह का योग हो तो उनके लिए कुंभ या घट विवाह का प्रयोग अनिवार्य होता है इस प्रयोग में कन्या के विवाह के कुछ दिन पहले उसका विवाह विधिवत पूजन के साथ पीपल के पेड़ के साथ या भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ किया जाता है

इस तरह के प्रयोग से जातक की जन्मकुंडली में जो २ या अधिक विवाह के योग होते है उसका निवारण होता है

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Guru Chandal Dosh: गुरू चांडाल दोष क्या है?

guru chandal dosh

जिस किसी जातक की कुंडली मे गुरु चांडाल दोष होता है उसका चरित्र अशक्त हो जाता है।
इस दोष के कारण जातक सदैव बीमारियो से घिरा रहता है।
पाचन तंत्र, कैंसर या अन्य किसी गंभीर बीमारी होने का डर रहता है।
अकीर्ति या निंदा का सामना करना पड़ता है।
व्यक्ति के धर्मभ्रष्ट होने का खतरा बढ जाता है।
किसी महिला की जन्मकुंडली मे यह दोष हो तो उसे वैवाहिक जीवन मे बहुत समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
इस दोष के कारण व्यक्ति के अच्छे गुण कम हो जाते है, और नकारात्मक या बुरे गुण बढ़ जाते है।
अनैतिक या अवैध कार्यो मे व्यक्ति की रुचि बढने लगती है।

गुरु चांडाल दोष प्रभाव कब कम हो जाता है?

जब राहू गुरु के साथ कोई दूसरा ग्रह भी साथ रहे तो इस दोष का प्रभाव कम हो जाता है, परमात्मा की असीम कृपा हो, बृहस्पति उच्च राशि मे हो तो निम्न दशाओ मे गुरु चांडाल दोष का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर नहीं पड़ता है।

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मंगल दोष क्याँ है ? Mangal Dosh

ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में १२ भाव ( घर ) होते है जिसमें से प्रथम , चतुर्थ , सप्तम , अष्टम एवं द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति होती है तो मंगल दोष का निर्माण होता है अर्थात् किसी पुरुष या स्त्री की जन्म पत्रिका में 1,4,7,8,12 भाव में अगर मंगल बैठता है तो वह जातक मांगलिक कहलाता है !

मंगल दोष के लक्षण ( कैसे पता करे हम मंगल दोष से पीड़ित है या नहीं )

  1. विवाह में देरी जो व्यक्ति मांगलिक होता है उसके विवाह में देरी होती है ।
  2. मंगल दोष के कारण विवाह में देरी के साथ संबंध टूटना विवाह तय होकर छूट जाना ।
  3. विवाह के बाद जीवनसाथी के साथ नहीं बनना या झगड़ा ज्यादा होना ।
  4. एसा जातक अहंकारी और अत्यधिक क्रोधी स्वभाव का होता है ।
  5. किसी भी प्रकार के वैवाहिक सुख का भोग नहीं कर पाता है
  6. कर्ज से परेशान रहता है ।
  7. मांगलिक जातक के २ विवाह होने की भी संभावनायें रहती है
  8. किसी प्रकार की दुर्घटना की आशंका रहती है ।
  9. व्यापार नौकरी और परिवार सुख में भी कमी करता है ।

मंगल दोष को दूर करने के उपाय

मंगल दोष के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए आप निम्नलिखित उपायो को अपना सकते है :-

जातक की कुंडली मे मंगल दोष हो तो, उसे घर बनवाते समय लाल पत्थर का उपयोग करना चाहिए।
बंदरो को गुड और चना खिलाने से मंगल दोष के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
दो मुट्ठी मसूर लाल कपड़े मे बाँधकर भिखारी को दान देना चाहिए।
जहाँ आप सोते है, उस कमरे मे लाल कपड़े मे सौफ बांधकर रखना चाहिए।

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Pandit Ankit Sharma
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चंद्र ग्रहण दोष

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