kaal sarp dosh puja ujjain

क्या है कालसर्प दोष ? कालसर्प दोष के प्रकार

कालसर्प् दोष क्या होता है ?

सामान्यतः आपकी जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु केतु के बीच में आ जाये तो कालसर्प दोष बनता है या एसा कह सकते है कि राहु केतु आमने सामने हो और सभी ग्रह कुंडली के एक भाग में आ जाये तब जाकर इस दोष का निर्माण होता है

कालसर्प दोष सामान्यतः १२ प्रकार के होते है अलग अलग भाव से अलग अलग प्रकार का कालसर्प दोष बनता है आइये जानते है किस भाव से कौन सा कालसर्प दोष बनता है —

आइये जानते है कि कैसे बनते है कुंडली में १२ प्रकार के कालसर्प दोष ?

1 अनंत कालसर्प दोष—

सामान्यतः जन्मकुंडली में कालसर्प दोष राहु केतु के माध्यम से बनता है जब राहु केतु के बीच सारे ग्रह आ जाते है तब कालसर्प दोष बनता है पर जब राहु कुंडली की लग्न अर्थात् प्रथम भाव में हो और केतु सप्तम में और सभी ग्रह दोनों के बीच अर्थात् एक तरफ़ हो तब अनंत कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

2 कुलिक कालसर्प दोष—

जिस प्रकार पहले भाव से अनंत कालसर्प दोष का निर्माण होता है ठीक उसी प्रकार से दूसरे भाव में राहु और अष्टम में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच आ जाये तब कुलिक कालसर्प योग का निर्माण होता है ।

3 वासुकी कालसर्प दोष—

आपको जन्मकुंडली में जब तीसरे भाव में राहु और नवम हो और इनके बीच में सभी ग्रह आ जाये तो वासुकि कालसर्प योग/दोष का निर्माण होता है ।

4 शंखपाल् कालसर्प दोष—

शंखपाल कालसर्प आपकी जन्मपत्रिका में जब बनता है जब राहु आपकी पत्रिका में चतुर्थ भाव में हो और केतु दशम भाव में और सभी ग्रह इनके बीच में हो तब यह दोष बनता है ।

5 पद्म कालसर्प दोष—

जब आपकी जन्मकुंडली में राहु पंचम भाव में हो जिसे हम शिक्षा या संतान के नाम से भी जानते है और केतु आय अर्थात् एकादश ११वे भाव में और सभी ग्रह उनके बीच में हो एसी परिस्थिति में पद्म कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

6 महापद्म कालसर्प दोष —

जब राहु ग्रह कुंडली कि छठे भाव में स्थित हो और केतु ग्रह बारवे भाव में स्थित हो और समस्त ग्रह इनके बीच में आ जाये तब महापद्म कालसर्प दोष बनता है यह स्थिति शत्रु के बेहत शुभ बताई गई है ।

7 तक्षक कालसर्प दोष—

अनंत कालसर्प की विपरीत परिस्थिति अर्थात् जब राहु ग्रह सातवें भाव में हो और केतु ग्रह लग्न में विराजमान हो और सभी ग्रह इनके बीच में हो तब एसी स्थिति में तक्षक कालसर्प बनता है ।

8 कर्कॉटक कालसर्प दोष—

जब जातक की जन्मकुंडली में अष्टम भाव में राहु ग्रह और दूसरे भाव में केतु ग्रह हो और बाक़ी सातो ग्रह इनके बीच हो तब कर्कॉटक कालसर्प दोष बनता है ।

9 शंकचूड़ कालसर्प दोष—

जब जन्मकुंडली में राहु ग्रह नवम भाव में और केतु ग्रह तीसरे भाव में हो और समस्त ग्रह इनके बीच में आ जाये तब शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

10 घातक कालसर्प दोष—

जब आपकी जन्मकुंडली में राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में और सभी ग्रह इनके बीच में हो तो एसी परिस्थिति में घातक नामक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

11 विषधर कालसर्प दोष—

जब जन्मकुंडली में राहु एकादश अर्थात् ११वे भाव में हो और केतु पंचम भाव में स्थित हो और सभी ग्रह इनके बीच में आ जाये तो इस दोष का निर्माण होता है ।

12 शेष कालसर्प दोष—

आपकी जन्मकुंडली में राहु ग्रह द्वादश अर्थात् बारवे भाव में हो और केतु ग्रह छठे भाव में स्थित हो और सभी ग्रह इनके बीच अर्थात् मुँह में आ जाये तब जाकर शेष कालसर्प दोष का निर्माण होता है ।

कालसर्प दोष के लक्षण-

कालसर्प दोष व्यक्ति से परिश्रम अपेक्षा से अधिक करवाता है कालसर्प दोष से पीड़ित लोगो को स्वप्न में सर्प दिखते है एक लंबे समय तक सफलता ना मिल पाना साथ ही जब आप किसी कार्य को बड़ी मेहनत से करते है और पूर्ण होने वाला हो तब एकदम से ख़राब हो जाना या शुरू से शुरू करना पड़ता है ( end time ) पर कार्य रुक जाना और कुछ परिस्थिति में आपको ग़लत खान पान गलत संगति की तरफ़ ले कर जाता है देखा गया है कि इसके प्रभाव से 80 से 90 प्रतिशत लोग काले और नीले कपड़े पहन ना अधिक मात्रा में पसंद करते है यह दोष आपको नकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है मानसिक स्थिति को कमजोर करता है कही ना कही आपके वैवाहिक जीवन पर भी प्रभाव डालता है शिक्षा में रुकावट और सबसे ज़्यादा व्यापार में परेशानियाँ खड़ी करता है यहाँ तक कि देखा गया है कि अष्टम भाव का कालसर्प अर्थात् कर्कॉटक कालसर्प दोष अपनी खराब दशा आने पर मृत्यु जैसी परिस्थिति का निर्माण करता है

कालसर्प दोष के उपाय-

  1. काले और नीले वस्त्र पहन ने और दान करने से बचे ।
  2. जितना हो सके मांस मदिरा नशे से दूर रहे ।
  3. शिव आराधना करे ।
  4. किसी अपाहिज व्यक्ति को नशे का सामान दान करे ।
  5. रविवार के दिन टॉयलेट में नील डालकर फ़्लश करे ।
  6. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करे या ब्राह्मणों से करवाये ।
  7. उज्जैन या नासिक जाकर कालसर्प दोष की शांति का पूजन करे।
  8. किसी अच्छे ज्योतिषी के सलाह अवश्य लेवे ।

कहा होता है कालसर्प् दोष का पूजन ?

भारतीय ज्योतिष और शास्त्रों के अनुसार १२ ज्योतिर्लिंग में से महाराष्ट्र के नासिक में स्थित त्रयम्बकेश्वर में कालसर्प दोष की पूजा का विधान बताया जाता है और मध्य प्रदेश में स्थित उज्जैन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रांगण में नागचंद्रेश्वर मंदिर जो की वर्ष में एक बार सिर्फ नागपंचमी के दिन ही खुलता है मान्यता है कि वहाँ दर्शन मात्र से कालसर्प दोष का निवारण होता है और उस दिन लाखों की संख्या में भक्त दर्शन करते है और उज्जैन में कालसर्प दोष पूजा की विधि करते है और यही एक मात्र कारण की वर्षों की परंपरा के अनुसार उज्जैन में भी क्षिप्रा नदी के तट पर कालसर्प दोष की पूजा विधि होती है जो की आज तक हो रही है ।

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कैसे करे कालसर्प दोष का निवारण ?

हमारे द्वारा उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे कालसर्प दोष शांति पूजा विधिवत करवाई जाती है आप पंडित जी से बात करके अपनी जन्मदिनांक और जन्म समय और जन्मस्थान के माध्यम से अपनी कुंडली दिखा कर किस प्रकार का दोष है जान सकते है और मार्गदर्शन प्राप्त कर विधिवत उसका उपाय निवारण और विधि भी जान सकते है

कालसर्प दोष की पूजा में कितना खर्च आता है ?

सामान्यतः कालसर्प दोष निवारण पूजा के लिए 2100 से 5100 तक का खर्च आता है जिसमें पूजा की सामग्री मंदिर स्थान की रसीद ब्राह्मण दक्षिणा सहित सभी खर्च सम्मिलित होता है इसके अलावा यदि आप पूजन के साथ जप करवाते है तो फिर खर्च बड़ जाता है
आपकी सुविधा के अनुसार खर्च बढ़ता और कम भी हो जाता है

कालसर्प दोष की पूजा विधि के लिये स्नान करके सफ़ेद वस्त्रों को धारण करके (कुर्ता पजामा या धोती) पंडित जी के पूजा स्थान पास पहुँच कर पूजन प्रारंभ करते है
कालसर्प दोष पूजा विधि में सर्व प्रथम आपको 5 पूजन करने होते हैं शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजन पूजन यज्ञ आदि को करने से पहले पंचांग कर्म अर्थात् (कर्मकांड पूजा विधि के पाँच अंग )करना अनिवार्य बताया गया है जिसमें सबसे पहले

  1. गणेश पूजन
  2. वरुण पूजन
  3. कुलदेवी पूजन
  4. नांदी श्राद्ध ( पितृ पूजन )
  5. ब्राह्मण वरण

कालसर्प दोष पूजा की विधि ?

होता है इसके बाद ही आप कालसर्प दोष का पूजन करना चाहिए यह पाँच पूजन होने के बाद कालसर्प दोष पूजन में 12 नागों का पूजन होता है और साथ ही एक चाँदी के नाग नागिन के जोड़े का मन्त्रों द्वारा प्रतिष्ठा कर पूजन अभिषेक किया जाता है इसके बाद भगवान शिव के साथ नवग्रह का पूजन करते है और सभी भगवान के निमित में हवन ( यज्ञ ) का कर्म होता है इसके पश्चात भगवान की आरती होती है और फिर चाँदी के जिस नाग नागिन का हम पूजन करते है उन्हें विधिपूर्वक क्षिप्रा नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है विशेष बात जिन वस्त्रों को पहन कर आप पूजन विधि करते है उन वस्त्रों को पूजन के बाद नदी किनारे त्याग कर पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर जिन ब्राह्मणों द्वारा पूजन किया गया उनसे आशीर्वाद लेकर इस पूजा विधि को संपन्न किया जाता है ।

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